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Thursday, February 10, 2011

ग़ज़ल


कर दिया ख़ुद को भी जुदा कैसा I

जिस्म दीवार बन गया कैसा I


मुंजमिद होंठ आँख पत्थर सी,

कल हुआ था विसाल-सा कैसा I

(मुंजमिद - जमे हुए; विसाल - मिलन)


जाने क्या लफ्ज़े-अलविदा में था,

जाते-जाते वो रुक गया कैसा I


मर रहा हूँ तलाशे-हस्ती में,

हो रहा है ये हादिसा कैसा I

(तलाशे-हस्ती - जीवन की तलाश)


नोंच कर पर 'नरेश' तुम खुश थे,

फिर भी देखो वो उड़ गया कैसा I