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Friday, March 22, 2013

विभाजन


यह माना की तुमने धरा बाँट ली है,
मगर क्या कभी बाँट लोगे पवन भी?
कभी चाँदनी का विभाजन करोगे?
यह माना कि तुम बाँट लोगे गगन भी।

मुहल्ले शहर गाँव बाज़ार कूचे,
गगन चूमते पर्वतों की शिखाएँ।
यह माना कि तुम बाँटने पर जो आए,
तो बँट जाएँगी मक़बरों की शिलाएँ।
मगर क्या कभी धुप भी बँट सकेगी?
यह माना कि तुम बाँट लोगे अरुण भी।

पके खेत खलिहान भण्डार धन के ,
मचलती हुई खेतियाँ बाँट लोगे।
यह माना कि तुम बाँटने पर जो आए,
तो धरती की सब बेटियाँ बाँट लोगे।
मगर क्या कभी मौत भी बँट सकेगी?
यह माना कि तुम बाँट लोगे कफ़न भी।

बसें गाड़ियाँ दफ़्तरों के मुलाज़िम,
क़िले खाइयाँ खण्डहर बाँट लोगे,
यह माना कि तुम बाँटने पर जो आए,
तो पूजा इबादत के घर बाँट लोगे।
मगर क्या सुगन्धि कभी बँट सकेगी?
यह माना कि तुम बाँट लोगे चमन भी।

विभाजन कठिन तो नहीं दोस्तो, पर,
कभी काश सोचो ज़रा ध्यान देकर।
कि इक बार धागा अगर टूट जाए,
तो जुड़ता है, लेकिन नयी गाँठ लेकर।
यह माना कि खुशियाँ बटाँ लोगे फिर भी,
कभी काश तुम बाँट पाओ चुभन भी।

Monday, March 11, 2013

दिल जिगर पेश करूँ दौलते-जाँ पेश करूँ।
आरती पेश करूँ या कि अज़ाँ पेश करूँ।
मेरे मालिक मैं हूँ बस तेरी रज़ा का बन्दा,
मेरे बस में हो तो मैं सारा जहाँ पेश करूँ।    

Thursday, March 7, 2013

कोई ये काश बता दे तुझे कि तेरे लिए,
तमाम रात निगाहें किसी की भटकेंगी।
कि आहटों पे कोई चौंक-चौंक उट्ठेगा,
कि हसरतें किसी सीने में आँच भी देंगी।    

Saturday, March 2, 2013

उलझन


मैं जब ख़ुदा के घर से चला था
तो उसने मुझे एक पैग़ाम दिया था
वो पैग़ाम तुम्ही लोगों के लिए दिया था
लेकिन तुमने
बिना सुने ही
मुझ पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया
तुम इतना चीख़े-चिल्लाए बिला-सबब कि
मैं कुछ कहता भी तो तुम क्या सुन सकते थे।

अब मैं सोच रहा हूँ
वापस जाऊँ तो कौन-सा मुहँ लेकर जाऊँ
ख़ुदा कहेगा
मेरा पैग़ाम दिया क्यों नहीं।