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Friday, August 9, 2013

रैन-बसेरा

बाबा ने पुछा
ये घर किसका है बेटा?
मैंने कहा
मेरा है बाबा।
कहने लगा यही कहते थे तेरे अब्बा तेरे दादा
तेरे दादा के अब्बा उनके अब्बा के अब्बा
तेरे बेटे पोते भी तो यही कहेंगे
लेकिन तुझसे पहले जिनकी मिल्कीयत थी
वो अब मिल्कीयत का दाअवा क्यों नहीं करते?
लब उनके ख़ामोश हैं क्योंकर?
घर जब उनका था तो उनके हक़े-सुकूनत
किसी क़ब्र की किसी लहद तक क्यों सिमटा है?
बाबा कह कर चला गया तो
मैंने घर के दरवाज़े पर लिक्खा
रैन-बसेरा।
लेकिन कालेज से आते ही
मेरे बेटे ने रूमाल से
मेरा लिक्खा साफ़ कर दिया।        

Thursday, August 1, 2013

मन ही रिपु मन ही सखा जो मन वश में होय।
फिर सारे संसार में मीत न शत्रु कोय।।