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Thursday, March 27, 2014

ग़ज़ल

दिल-सी नायाब चीज़ खो बैठे।
कैसी दौलत से हाथ धो बैठे।

अह्दे-माज़ी का ज़िक्र क्या हमदम,
अह्दे-माज़ी को कबके रो बैठे।

हमको अब ग़म नहीं जुदाई का,
अश्के-ग़म जाम में समो बैठे।

वअज़ करने को आए थे वाइज़,
मै से दामन मगर भिगो बैठे।

क्या सबब है 'नरेश' जी आख़िर,
क्यों जुदा आप सब से हो बैठे।

(नायब - दुर्लभ; अह्दे-माज़ी - अतीत; हमदम - मित्र; अश्के-ग़म - ग़म के आँसू; वअज़ - नसीहत; वाइज़ - उपदेशक)