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Tuesday, January 27, 2015

ग़ज़ल

करायेंगे हमें मुन्सिफ़ प्रतीक्षा कब तक।
हमारे धैर्य की होगी परीक्षा कब तक।

किसी को दण्ड मिले लोकहित हनन के लिए,
हरेक जुर्म की लम्बी समीक्षा कब तक।

बयानबाज़ी बहुत हो ली अब ये बतलाओ,
पड़ेगी सीता को देनी परीक्षा कब तक।

बिना किताब पढ़े ही लिखेगा आलोचक,
मगर बता दे छपेगी समीक्षा कब तक।

हमारी साधना कमज़ोर है न जाने 'नरेश',
टलेगी और अभी अपनी दीक्षा कब तक।